Sunday, November 15, 2015

जैविक खेती

जैविक खेती

जैविक कृषि वह पद्धति है जिसमें जमीन की सजीवता की गुणवत्ता जैव विविधता आदि का प्राकृतिक संतुलन बनाये रखते हुऐ तथा पर्यावरण  का प्रदूषण किये बिना लम्बे समय तक एवं टिकाऊ उत्पादन किया जा सकता है। मनुष्य आदि काल से ही भोजन के लियें जंगली जानवरो का शिकार  एवं दुध के लिऐ पशुपालन  तथा स्थानान्तरित कृषि करता चला रहा है धीरे धीरे कृषि का व्यवसायिक ज्ञान बढने से मनुष्य स्थायी कृषि करने लगा वह कृषि के ज्ञान का पीढि़यो से अनुसरण करके पिछली भुलो को सूधारते हुवे अपने अनुभवो के आधार पर कृषि को स्थायी बनाता रहा   जिसमे खाद्य उत्पादको के उत्पादन हेतु वांछित फसलो को उगाना अवांछित वनस्पतियो को हटाना भूमि की जुतायी कर मौसम अनुसार फसल बोना, जमीन को परती छोड़ना , फसल चक्र अपनाना था इस प्रकार बढतें ज्ञान के साथ बढ़ता फसल उत्पादन लगातार बढ़ती आबादी की भुख मिटाने का साधन बनता गया

आज विश्वमें बढती हुयी जंसख्या के लिये भोजन आपूर्ती एक मुख्य समस्या है किसानो द्वारा उत्पाद बढ़ाने  के लिये रासायनिक खादों एवं कीटनाश्क के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति तो कम हो ही रही है , साथ ही साथ वातावरण प्रदूशित भी हो रहा है मनुष्य के स्वास्थ में दिन प्रतिदिन गिरावट ही रही है तथा  प्रकृति के आदान - प्रदान का च्रक  भी प्रभावित हो रहा है

वर्तमान में किसानो को जैविक खेती को बढावा देने के लिये जागरूक तो करना ही पढेगा एवं साथ में रासायनिक खाद से होने वाले नुकसान के बारे में भी जानकारी देनी आवश्यक हो जाती है जिसके लिये सभी को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है किसानो को जैविक खेती के प्रति आकर्षित एवं प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न सामुदायिक संगठन एवं सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। कई क्षेत्रो में सरकार के माध्यम से भी नाडेप खाद बनाने पर भी जोर दिया गया है लेकिन वह पूर्ण रूप से प्रभावी नही हुआ है।  सिर्फ इस तरह की योजना बनाने भर से ही समस्या का समाधान नही हो जाता है बल्कि योजना को कैसे वास्तविक रूप में लागू किया जाय जिससे किसानो को सीधा लाभ मिले सके।

आज से 30-35 वर्ष   पूर्व भारत वर्ष के किसान पारंपरिक खेती यानी जैविक खेती ही किया करते थे अचानक जंसख्या का बढना, उत्पादन का कम होना हरित क्रान्ती को जन्म दे गया जिससे दिनो - दिन कृषि की उर्वरा शक्ति कम हो गयी उत्पादन क्षमता में कमी आने लगी, किसान लालच में आकर अंधाधुन्द खाद एवं रासायनिक कीटनाश्क का प्रयोग कर उत्पादन को बढाने लगे उसी उत्पाद का उपयोग कर मनुष्य का शरीर कमजोर होता गया रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी और धीरे धीरे आयु भी कम होती जा रही है तरह -तरह की बिमारियों का बढ़ना आम बात हो गयी है इसका सबसे बढ़ा उदाहरण पंजाब से राजस्थान को जाने वाली ट्रैन  है जिसकी आज कैन्सर ट्रैन  के नाम से पहचान है यदि धीरे धीरे जैविक खेती को एक कार्यक्रम के रूप में चलाया जाय तो तरह तरह की होने वाली बिमारियों से निजात मिल सकती है एवं भूमि की उर्वरा शक्ति में भी सुधार हो सकता है

वर्तमान में हमारी कृषि उपजाऊ  भूमि पूर्ण रूप से अस्वस्थ हो चुकी है , जब तक मॉ स्वस्थ नही है तब तक शिशु  कैसे स्वस्थ पैदा हो सकता है स्वस्थ मॉ ही एक स्वस्थ - शिशु को जन्म दे सकती है यानि की कृषि उपजाऊ भूमि अस्वस्थ है तो वह कैसे स्वस्थ उत्पाद को पैदा कर सकती है यह एक सोचनीय विषय है

(लेखक उत्तराखंड आर्गेनिक कमोडिटी बोर्ड देहरादून में सामाजिक वैज्ञानिक पद पर कार्यरत है और इस लेख में व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत है !)

विचारक - पुष्पा जोशी 

देहरादून

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