Saturday, January 22, 2022

मै था अनभिज्ञ

मुझे पता ही नहीं था कि मैं इतने पौष्टिक गुणों से भरपूर हूं मुझ में कैल्शियम प्रोटीन ऊर्जा आदि तत्व  पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं इस बात की मुझे कोई जानकारी नहीं थी !
आज से 10 से 15 वर्ष पूर्व मैं घर के किसी कोने में पड़ा रहता था मुझे कोई पूछता ही नहीं था ,मेरा कोई मूल्य नहीं था, लोग अपने पशुओं के लिए आहार हेतु मेरा उपयोग किया करते थे, मैं सिर्फ गरीबों के भोजन का हिस्सा था !
जिनके पास थोड़ा बहुत पैसा होता था वह मुझे देखना भी पसंद नहीं करते थे क्योंकि मैं काला या मटमैला सा हूं मेरा कोई मूल्य नहीं था, लोग आपस में ही मेरा आदान- प्रदान कर लेते थे मैं बिना मूल्य के था ! 
हालांकि मेरी पैदावार अच्छी होने के बावजूद भी कई वर्षों तक घर के कोने में  पड़ा रहता था       परंतु वर्तमान में...😎
 पिछले 10 वर्षों में मेरी तो कायाकल्प हो गई मेरी  मांग बढ़ने लगी मेरे गुणों पर शोध होने लगा है, बड़ी-बड़ी किताबें लिखी गई और पौष्टिक आहार के रूप में चर्चित होने लगा ! अब मैं नीचे से ऊपर की ओर बढ़ने लगा हूं अब मैं भी  सामर्थ्यवान लोगों के भोजन का हिस्सा बनने लगा हूं , मेरा भी मूल्य बढ़ने लगा है ,जहां भी पैदा हो रहा हूं उसके स्वामी को को अच्छा लाभ दे रहा हूं मेरा सम्मान होने लगा है, मुझे खरीदने के लिए क्रेता द्वारा अग्रिम बुकिंग की जाने लगी है ! 
सरकार का भी भरसक प्रयास हो रहा है कि मैं बच्चों और गर्भवती महिला के भोजन का हिस्सा  बनू क्योंकि मुझ में सभी तरह के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो इन दोनों के लिए आवश्यक हैं !
शोधार्थियों ने मुझ पर कृपा की और मेरा भाग्य बदल गया , अब मैं देश ही नहीं विदेशों की भी सैर  करता हूं मेरा अच्छा मूल्य मिलने लगा है यहां तक की अब मेरे नाम के अंतरराष्ट्रीय मेले भी लगने लगे हैं जहां पर सिर्फ मेरी ही चर्चा एवं बातें होती हैं कि मेरी पैदावार को कैसे बढ़ाया जाए ताकि मुझे आमजन के भोजन में शामिल किया जा सके ! 
इस बीच मुझे अंतरराष्ट्रीय मेले में जाने का अवसर प्राप्त हुआ वहां पर एक सज्जन द्वारा कहा गया कि वह 6 माह सर्दियों में भोजन के रूप में मेरी ही रोटी बनाकर खाते हैं जिससे उनकी मधुमेह की बीमारी ठीक हुई है और शरीर में उनको उर्जा का अनुभव भी होने लगा है ! 
उस दिन मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था मुझे लगा मैं तो भाग्यवान हूं इतने लोग मुझ में रुचि लेने लगे हैं और जहां भी देखो मेरी ही चर्चा हो रही है अब मैं बताना चाहूंगा कि मैं कौन हूं ........
मैं हूं मंडुवा /कोदो /रागी एवं फिंगर मिलेट😊🤗🤗
 मेरी यात्रा👇

विचारक ..
पुष्पा जोशी 
देहरादून, उत्तराखंड


Friday, January 14, 2022

कुमाऊं का लोक पर्व घुघुतिया त्यौहार मकर सक्रांति

मकर सक्रांति के पर्व पर स्नान का बड़ा ही महत्व है कुमाऊं में प्रत्येक व्यक्ति यह  प्रयत्न करता है की  मकर सक्रांति पर सरयू नदी के तट पर ,रामेश्वर तट पर ,काली नदी पर या शारदा नदी  के तट पर गंगा स्नान स्नान हो जाए तो इससे बड़ा और कोई पुण्य नहीं मिल सकता है ! जो नदी में स्नान न कर सके वह अपने घर में ही स्नान के समय गंगाजल का छिड़काव करते हैं  एवं स्नानादि के पश्चात सूर्य की उपासना करना विशेष फलदायक  माना  जाता है!  मकर संक्रांति से पूरे माघ महीने में कई महिलाएं  माघ का व्रत रखती हैं यदि कोई पूरे व्रत नहीं रख पाते हैं तो 3 दिन तक व्रत रखकर भगवान की उपासना करती हैं जिसको Tirmaghi  व्रत भी कहा जाता है ! तत्पश्चात खिचड़ी का भोग निकालकर दान किया जाता है एवं खिचड़ी ही घर में भोजन स्वरूप खाई जाती है !शाम के वक्त कुमाऊं के हर घर में घुघुतिया बनाई जाती है जिसमें आटे में गुड़ के पानी दूध अजवाइन एवं मोहिन मिलाकर आटे को गुथा जाता है ! फिर आटे से अलग-अलग प्रकार की आकृतियां  बनाई जाती हैं जिसमें ढाल, तलवार ,डमरु, घुघूती , एवं उड़द दाल के बड़े होते हैं इनको फिर तेल में तला जाता है !   तल लेने के बाद इनकी माला बनाई जाती है, माला के बीचो बीच में संतरा पीरो दिया जाता है!  अगले दिन सुबह बच्चे यह माला को पहनकर कव्वे को बुलाते हैं और कौवे से आग्रह किया जाता है कि वह मेरी माला के डमरु, ताल ,तलवार ,और बड़े को ले जा और मुझे इसके बदले में उपहार के रूप में सोने का डमरु तलवार और ढाल देकर जा !  अपने समय में जब हम बच्चे थे  घुघुतिया बनाने का बहुत ही उत्साह रहता था एक बच्चा कम से कम अपने हिस्से में 100  घुघुतिया बनाता  था ! प्रत्येक घर में  घुघुतिया की माला बनाकर पूरे गांव में एक दूसरे को साझा की जाती थी लगभग 15 से 20 दिन तक यह माला एक घर से दूसरे घर मैं जाने का सिलसिला चलता रहता था एवं घुघूती की माला से एक दूसरे के घर की बनी मित्रता को एक विश्वास के  डोर में बांधने का संकेत प्रकट करती हे  घुघुतिया की माला!!!!!  

Saturday, January 8, 2022

किसानों की आड़ में चुनावी रैली

सितंबर महीने से लगातार 5 बार किसानों को किसान मेले के नाम से इकट्ठा किया जा रहा है,  की किसान मेले में आओ और कृषि से संबंधित नई -नई तकनीकी की जानकारी लो और कृषि में सुधार हेतु व्याख्यान सुनो , इन 5 बार के किसान मेला के नाम से बहुत बड़ीऔर लंबी तैयारियां होती हैं ! किसानों को उनके गांव से मेला स्थल तक लाने में एक अलग ही महाभारत होती है ,एक तरफ किसान मेले में या संगोष्ठी में आने को तैयार नहीं होता दूसरी तरफ यदि वह आ भी जाता है तो उसके बाद के प्रश्नों का उत्तर देना बड़ा मुश्किल सा होता है! किसान सुबह से मेले में या संगोष्ठी में आ जाते हैं दिन भर उनको बिठाया जाता है बिना पानी बिना भोजन के, संगोष्ठी मे दिन भर फूहड़  गीत संगीत की धुन बस्ती वजती रहती है किसी को वह संगीत समझ में नहीं आता है और कोई उससे अनजान रहता है क्योंकि वह आज तक सिर्फ अपनी खेती बाड़ी में काम किया हुआ एक वर्ग है वह भला इन फूहड़ गीत संगीत को कैसे समझ समझेगा , लगभग 3:00 या 4:00 माननीय मुख्यमंत्री साहब आते हैं और अपने उद्बोधन  सभी का स्वागत  किया  जाता है उस स्वागत भाषण में कहीं भी कृषक शब्द का उच्चारण नहीं होता है भले ही वह कृषक गोष्ठी एवं  कृषक मेला है उस से भला उनको क्या करना उन्हें तो भीड़ दिखती है भले ही वह कैसी भी हो ! उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की इस भीड़ में अन्नदाता बैठा है या कोई और उनका उद्देश्य सिर्फ अपनी चुनावी रैलियों का लक्ष्य पूरा करना होता है, ऐसी घोषणाएं की जाती हैं जिनका उस किसान के जीवन में कोई  सीधे लाभ है ही नहीं ,इन सब कृषक संगोष्ठी  या मेलों में कोई कृषि तकनीकी  या कोई  कृषि  यंत्रों की या कृषि उपज विपणन की कोई बात नहीं होती है ! भाषण होते हैं तो सिर्फ मूर्तियां बनाने की ,खेल ग्राउंड बनाने की ,सड़क बनाने की ! मुझे सबसे बड़ा पश्चाताप औरआश्चर्य तब होता है जब समापन में भी आए हुए किसानों को धन्यवाद तक नहीं कहा जाता दिन भर का भूखा प्यासा किसान हमारी ओर देखकर हाथ जोड़कर सीधे अपने घर को चला जाता है वह समझ ही नहीं पाता  है की आखिर उसको यहां क्यों बुलाया गया दयनीय अनुभव!!....