नदी यमुना के तीर कदम चढ़ी कान्हा बजाई गयो बांसुरिया!
गई गई असुर तेरी नार मंदोदरी सिया मिलन गई बागा में!
झनकारो झनकारो झनकारो गोरी प्यारो लागो तेरा झनकारो!
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंग भरे वस्त्र धारण किए जाते हैं महिलाएं व्रत रखकर आंवला पेड़ की पूजा करती है और तत्पश्चात शुरू होती है पांच दिवसीय बैठकी एवं खड़ी होली पुरुष वर्ग एक सामूहिक स्थान में एकत्र होकर अपने इष्ट देव की पूजा कर चीर बंधन करते हैं, पुरुषों में होली गायन में मुख्यतः विशेष श्रृंगार रहता है जिसमें संयोग वियोग के परिदृश्य को गीतों के माध्यम से गाया जाता है , पुरुष वर्ग की होली में जय जयवंती ,भैरवी आदि राग रागिनी की तर्ज पर गाई जाती है, वहीं महिला वर्ग में राधा कृष्ण का प्रेम, गोपियों का कृष्ण के प्रति प्रेम श्रद्धा भाव , राम के बनवास का वर्णन ,रावण का अशोक वाटिका में जाना, मंदोदरी का सीता से मिलना, राम विवाह ,शिव भक्ति, राम भरत मिलाप ,का वर्णन एवं साथ ही साथ देवर भाभी का मजाकिया अंदाज , एक महिला का अपने सैया से बिरह वियोग होना, ननद भाभी की अठखेलियां एवं सखियों के साथ राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम को बहुत ही शानदार एवं श्रृंगार के साथ लइबद्ध तरीके से गाए जाते हैं , ढोलक मजीरा की धुन इन गीतों को और भी मोहक मनमोहक बना देती हैं !
एकादशी से पूर्णिमा तक कुमाऊं के हर घर में होली गायन की परंपरा सदियों से चली आ रही है दोपहर 1:00 बजे से शाम के लगभग 6:00 बजे तक पुरुष एवं महिलाएं होली को होली गायन से फुर्सत नहीं रहती है वही शहरों की बात करें तो दिल्ली,देहरादून ,कानपुर ,लखनऊ ,चंडीगढ़, इंदौर, पुणे मुंबई जैसे बड़े शहरों में रह रहे कुमाऊं के लोग अपनी संस्कृति और परंपरा का निर्वहन बड़े उल्लास से कर रहे हैं!
पुष्पा जोशी
10 March 2022
23:47