Friday, August 12, 2022

श्रावणी पूर्णिमा , रक्षाबंधन एवं कुमाऊं में जनेऊ पूजा

रक्षाबंधन के दिन कुमाऊं में जनेऊ पूजा की भी परंपरा है इस अवसर हेतु कुल पुरोहित द्वारा अपने यजमान के लिए जनेऊ पूरे विधि विधान के अनुसार बनाई जाती है ! 

जनेऊ बनाने का कार्य पुरोहित द्वारा लगभग 2 माह पूर्व से प्रारंभ किया जाता है,  एक विशेष शारीरिक मुद्रा में  जनेऊ बनाई जाती है घुटना 90 डिग्री में मोड़ कर  दाई  जांघ  को ऊपर उठाते हुए उस पर तकली घुमाते तथा बाए हाथ की डोर को  हवा में ऊपर उठाकर जनेऊ  कताई का कार्य  किया जाता  है, जनेऊ को तैयार करने में काटने ,लपेटने, ग्रंथि डालने और रंगने  के कार्य  को कई प्रक्रियाओं से होकर गुजारना पड़ता है !

सदियों वर्ष पूर्व शुद्ध जगह पर उगी कपास को 3 दिन धूप में सुखाकर रुई से धागा भी स्वयं  बनाना होता था लेकिन आज जनेऊ का बारीक धागा बाजार में उपलब्ध होता है बाजार से मिले धागे को जनेऊ की माप में तीन सूत्रों को साथ लेकर हथेली खोलकर 4 अंगुलियों पर या 96 बार लपेटा जाता है  96 की संख्या में 32 विधाओं 4 वेद, 4 उपवेद, 6अंग, 6 दर्शन, 3 सूत्र  ग्रंथ ,और 9Arnayay  आते हैं  तथा 64 कलाओं का प्रतिनिधित्व माना जाता है ! 
जब सभी जनेऊ हो तैयार हो जाती हैं तत्पश्चात हल्दी के रंग में रंगने का कार्य प्रारंभ होता है एवं जनेऊ को धूप में सुखाया जाता है ! 
पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन किसी मंदिर में या किसी के घर पर कुल पुरोहित द्वारा जनेऊ की प्रतिष्ठा एवं पूरे विधि विधान के अनुसार यजमान की उपस्थिति में पूजा की जाती है एवं सभी पुरुष वर्ग जिनका  जनेऊ संस्कार हो गया हो वह सामूहिक रूप से जनेऊ धारण करते हैं  एवं  कुल पुरोहित द्वारा अपने-अपने  यजमानों को  वर्ष भर के लिए जनेऊ  भेंट की जाती है एवं  यजमान द्वारा अपने कुल पुरोहित को जनेऊ की दक्षिणा भी  दिए जाने की  परंपरा है ! 


 विचारक
 पुष्पा जोशी
12: 40 
12.08.2022

1 comment:

  1. बिल्कुल ठीक कहा पुष्पा आपने। अपने यहाँ आज भी श्रावणी की पूजा और वार्षिक यज्ञोपवीत संस्कार श्रावण पूर्णमासी को होता है। पूजन के बाद घर का पुरुषवर्ग जनेऊ बदलता है उसके बाद ही बहनें भाईयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं।

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