Tuesday, February 18, 2014

Hindi Kavita

कुछ मत कहना तुम 
मुझे पता है 
मेरे जाने के बाद 
वह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर
रुका हुआ है 
चमकीला मोती 
टूटकर बिखर जाएगा 
गालों पर 
और तुम घंटों अपनी खिड़की से 
दूर आकाश को निहारोगे 
समेटना चाहोगे 
पानी के पारदर्शी मोती को, 
देर तक बसी रहेगी 
तुम्हारी आंखों में
मेरी परेशान छवि 
और फिर लिखोगे तुम कोई कविता 
फाड़कर फेंक देने के लिए...
जब फेंकोगे उस 
उस लिखी-अनलिखी 
कविता की पुर्जियां, 
तब नहीं गिरेगी वह 
ऊपर से नीचे जमीन पर 
बल्कि गिरेगी 
तुम्हारी मन-धरा पर 
बनकर कांच की कि‍र्चियां... 
चुभेगी देर तक तुम्हें 
लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियां।

पुष्प जोशी 

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