हरेला बुवाई.. पर्व के 10 दिन पूर्व यानी आषाढ़ मास में की जाती है इसमें सभी प्रकार की खरीफ फसलों के बीजों की जो कि 5 या 7 प्रकार के होते हैं , (बीजों की बुवाई टोकरी में मिट्टी भर कर की जाती है वह मिट्टी किसी फल के पेड़ के नीचे की साफ जगह की होनी आवश्यक है ) टोकरी को पूजा घर में रखा जाता है प्रतिदिन प्रातः कालीन पूजा में जल का छिड़काव किया जाता है ताकि बीजों का अंकुरण एवं संरक्षण होता रहे !
बीज बुवाई के दसवें दिन यानी कि श्रावण मास की संक्रांति को प्रातः काल घर में पूजा करके घर के बुजुर्ग या बड़े सदस्य हरेला काटते हैं और पकवान बनाए जाते हैं , भगवान को भोग लगाया जाता है एवं हरेला भगवान के चरणों में अर्पित किया जाता है ! तत्त्पश्चात परिवार के सभी सदस्यों को तिलक करके सिर में आशीर्वाद स्वरुप हरेला को रखा जाता है !
हरेला ( कृषि हरियाली पर्व ) से यह भी अनुमान लगाया जाता है कि इस वर्ष खरीफ की फसल की पैदावार कैसी होगी !
वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह हरेला त्यौहार खरीफ फसल का एक सैंपल स्वरूप है प्रकृति इसी के अनुरूप रही तो फसल की पैदावार पर इसका (प्रतिकूल या अनुकूल ) क्या प्रभाव पड़ेगा !
विचारक
पुष्पा जोशी
16.7.2022
12.30pm ..
Very good cultural aspect in the narration
ReplyDelete